Sunday, December 6, 2020

लिपि देवनागरी, पुरातन नाम पाली
नहीं हूं मात्र सम्पर्क भाषा-
तुलसी मानस की हूं छंद, चौपाई
मीरा कबीर सूर की अमरवाणी.
मिटुंगी नहीं, टूटूंगी नहीं न मैं झुकूंगी,
अमर गाथा अखंड भारत के गाऊंगी,
नभ में लहराता रहे यूँ ही तिरंगा
मैं बनी रहूं भाषाओं की सूर सरि गंगा,
देवों की भाषा, संस्कृत मेरी जननी
हिंद के ललाट बिंदी, मैं हूँ हिन्दी
मैं हूँ राज भाषा हिंदी. संगीता (मीता)

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