Thursday, December 30, 2010

कालजयी

काल ,तुमने सबको हर लिया,
                  तुमने छिना  राम ,कृष्ण को ,
वर्त्तमान को बदला अतीत मैं ,
                 पर

याद तो अमर ,अजर है
             स्मृति के आदि न अंत
उसने जीता काल चक्र को ,
               याद
बस वही चिरंतन,वर्त्तमान
             जय किया काल को  बन कालजयी
 उसे अतीत बना कर बताओ .
        published in kadambini masik patrika on 1994 october
written by sangeeta pandey.
                

Monday, December 20, 2010

'जाने न देना '

खोल दो हर गवाक्ष, हर द्वार ,
             आने दो आज ठंडी बयार,
साफ़ कर दो मकड़ी के जाले
              बुने थे जो दर्द के रेशे से,
धो पोंछ लो हर गर्द को ,
              मायूसी के थे जो  विषाद के.
 
नमीत कोरों में सुरमें लगा लो ,
               सुना है ,खुशी निकली है सफ़र पे,
शायद गुजरे तुम्हारे दर से ,
                  ज़र्रे ज़र्रे मैं खुशबू बिखरने लगी,
सहमी जुबान से आवाज न देना,
                    माना अरसे से उदासी में  जिया ,
इस बार उसे गिरह में बांध लेना.

Friday, December 17, 2010

"मेह पहुना"


घिर आयी कलि बदरिया,
लाई आयी साथ सखियाँ,
 नन्ही नन्ही मह बुन्दानियाँ,
गरजी चमकी देखो बिजुरिया,
सनन सनन चले पुरवैया.

ऐसे पहुना देख धरा हर्षाई,
घर देहरी में फुलवा सजाई,
मधुर रागिनी में नदिया गयी,
 पहन अवनि धनि चुनरिया,
  सोंधी महक से अंचल महकाई.

निहार अवनि अम्बर के प्रीत,
 तुम याद आये बिछुड़े मीत.

Thursday, December 16, 2010

"अभिव्यक्ति"

शब्द से वाचाल हो तुम मौन,
शब्द तो है वर्णों में सीमित,
मौन तुम तो अन्तरिक्ष तक विस्तारित,
मौन पलक उठ कर गिरता,
 बात अनकही कह जाता,
मौन संवेदना दे दिलासा,
भाषा रह जाए आधा सा,
मौन में विलाप का स्वर समाहित,
 मौन में सार्थक विद्रोह अभिव्यक्त,
 मौन में छिपी सहानुभूति का स्वर,
 हारे जब भाव स्वयं से थक कर,
मौन से मौन में हो जाए व्यक्त.