Sunday, December 6, 2020

मांझी

उज्वल हो दिवा ,

या सुरमई साँझ

भरी दुपहरिया हो

या तारों भरी रात

खेते रहे मांझी नाव,

गाते रहे मल्हार

जीवन नैया चलती जाए


बांस के बांसुरी,

काठ के नाव

एक से उपजे सुर,

दूजा निर्वाह के उपाय.

सुर सजते जाए,

चलते जाए नाव.

पार उतारे जाने कितने मानुष.


थिरकन लहरों के,

धुन बांसुरी के

नश्वरता के पाठ

जगती को सिखाये

आज इस पार,

जाना है कल उस पार

अविरल बहते जाए समये के धार।

( संगीता-मीता)

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