Sunday, December 6, 2020

महा संगीत`


पक्षी के हो कलरब
या मधुप का हो गुंजन,

कल कल नाद हो निर्झर का
या मंद मंद हो स्वर समीर का ,

पायल का हो झंकार या
थाप हो मृदंग या तबले की ,

अधर के कंपन से कंपित
हो मीठी मुरली की सुर ,
होते उत्पन्न टकराहट से
लगते मधुर या नाद निनाद .
इस से परे है एक नाद;
अनहद

होता ये मौन मे मुखर
सिर्फ शून्य,ओर शून्य
व्याप्त जड़ चेतन मे ,
,अन्तरिक्ष मे
ये गीत नहीं संगीत नहीं
ये है महा संगीत ...
शांति की.

संगीता-मीता

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