मुझे बहने दो ...
ढलान से बहते, बहते 
मुझे राह बनाने दो, 
मैं क्षुद्र धारा गिरि  की 
मुझे मत बांधो. 
बंधन में, मै  प्रखर हो उठूंगी. 
विनाश की तिलक  सजा 
मै प्रिय से मिलूँ 
ये मेरी नियति ना हो, 
मुझे बहने दो...
मुक्त हो मै ,तुम्हे अपनाऊंगी, 
जीवन दायिनी हो मनुज 
निश्चित तुम तक आऊंगी.
मुझे कण कण में घुलने दो 
अवरोध मत धरो 
मुझे बहने दो...
बादल बन तुम तक आउंगी 
पावस  बन  तन मन   भिगाऊंगी
खेत - खलिहान में
अमृत बूंद सी बरसुंगी
मुझे मत बंधो बंधन में 
मुझे मत रोको
मुझे मिलने दो सागर से। 
- संगीता(मीता )
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