Thursday, July 4, 2013

सम्बन्ध

तोड़े कहाँ सम्बन्ध टूटता है
वह सदा अछूता रहता है
दोष दृष्टी के पार
अंतर्व्यथा का रूप ले
ह्रदय में पलता है.

कभी तुलिका में
अपने को परिभाषित करता
अभी गीतों में छंदों
स्व को मुखरित करता
सम्बन्ध कब तोड़े टूटता है

डगर मोड़ लो ,पथ बदल लो
बुद्धि से सौ लगाम कस लो
प्रहरी नियुक्त कर लो
मन से मन का लगाव
यूँ न छुटता है .

2 comments:

  1. प्रभावशाली कलम है ..
    बधाई !

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  2. thanks satish ji aap puri kavita padhe or pasand kiye.

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