Tuesday, June 4, 2013

मिलना और बिछड़ना
दूर बहुत दूर अपनों से हो जाना
बीछोह के पीड़ा को व्यक्त न करना
पिघलते नयन नीर को
हिमखंड कर उर में सहेजना ...
बिदा लेना बहुत आसन तो नहीं .

ये कैसी बिडम्बना
अपनों को दुःख में घिरते देखना
चाहते हुए भवरों से न निकल पाना
बेबसी से मुंह फेर लेना
पत्थर ह्रदय को कर लेना '....
जीना बहुत आसन तो नहीं

विरोधाभास सब और
अंतर्मन मूक,तम से व्यथित
बाह्य चराचर मुखर आलोकित
सामंजस्य है कहीं नहीं
राह से रहगुजर का ......

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