Monday, December 20, 2010

'जाने न देना '

खोल दो हर गवाक्ष, हर द्वार ,
             आने दो आज ठंडी बयार,
साफ़ कर दो मकड़ी के जाले
              बुने थे जो दर्द के रेशे से,
धो पोंछ लो हर गर्द को ,
              मायूसी के थे जो  विषाद के.
 
नमीत कोरों में सुरमें लगा लो ,
               सुना है ,खुशी निकली है सफ़र पे,
शायद गुजरे तुम्हारे दर से ,
                  ज़र्रे ज़र्रे मैं खुशबू बिखरने लगी,
सहमी जुबान से आवाज न देना,
                    माना अरसे से उदासी में  जिया ,
इस बार उसे गिरह में बांध लेना.

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