Friday, December 17, 2010

"मेह पहुना"


घिर आयी कलि बदरिया,
लाई आयी साथ सखियाँ,
 नन्ही नन्ही मह बुन्दानियाँ,
गरजी चमकी देखो बिजुरिया,
सनन सनन चले पुरवैया.

ऐसे पहुना देख धरा हर्षाई,
घर देहरी में फुलवा सजाई,
मधुर रागिनी में नदिया गयी,
 पहन अवनि धनि चुनरिया,
  सोंधी महक से अंचल महकाई.

निहार अवनि अम्बर के प्रीत,
 तुम याद आये बिछुड़े मीत.

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