पानी जैसे तरल क्षमा तुम
आओ मेरे मन को तरल कर दो
मुझे सरल कर दो
झूठा अहम से मुक्त हो
क्षमा मांग लू,क्षमा करू
अवनि से अंबर कितना दूर
अमृत बिन्दु बन पावस
उन्हे करीब लाती
रूठे मन को मैं माना लूँ
क्षमा दे सकू,क्षमा करूँ॰
सुगंध जैसे बिखर जाऊँ
हर मन के कोना कोना
क्षमा कर खुद महक जाऊ
औरों को भी महकाऊँ
क्षमा दूँ ,क्षमा मांग लू
सरल बनूँ,तरल बनूँ
शिशु सा निश्छल रहूँ
सांस का डोर जब टूटे
तब मै पश्चाताप से मुक्त रहूँ ।
संगीता.........
आओ मेरे मन को तरल कर दो
मुझे सरल कर दो
झूठा अहम से मुक्त हो
क्षमा मांग लू,क्षमा करू
अवनि से अंबर कितना दूर
अमृत बिन्दु बन पावस
उन्हे करीब लाती
रूठे मन को मैं माना लूँ
क्षमा दे सकू,क्षमा करूँ॰
सुगंध जैसे बिखर जाऊँ
हर मन के कोना कोना
क्षमा कर खुद महक जाऊ
औरों को भी महकाऊँ
क्षमा दूँ ,क्षमा मांग लू
सरल बनूँ,तरल बनूँ
शिशु सा निश्छल रहूँ
सांस का डोर जब टूटे
तब मै पश्चाताप से मुक्त रहूँ ।
संगीता.........
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