पक्षी के हो कलरब
या मधुप का हो गुंजन,
कल कल नाद हो निर्झर का
या मंद मंद हो स्वर समीर का ,
पायल का हो झंकार या
थाप हो मृदंग या तबले की ,
अधर के कंपन से कंपित
हो मीठी मुरली की सुर ,
होते उत्पन्न टकराहट से
लगते मधुर या नाद निनाद .
इस से परे है एक नाद;
अनहद
होता ये मौन मे मुखर
सिर्फ शून्य,ओर शून्य
व्याप्त जड़ चेतन मे ,
,अन्तरिक्ष मे
ये गीत नहीं संगीत नहीं
ये है महा संगीत ...
शांति की.
संगीता-मीता
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