तुम परम आनंद ,सत चिद आनंद
मै आनंद के प्रथम छंद
फिर ये विषाद कैसे है व्याप्त ?
तुम पवित्रता के महासिंधु तो
मै पवित्रतम बिंदु ,फिर
पातकता कैसे आविर्भूत ?
तुम सुमेरु निर्गुण ,सगुणों की
मै रेनू उसी सुमेरु की
फिर तुम में ,मुझमें भेद कैसा ?
तुम विद्या के सम्पूर्ण घट तो
मैं हूँ क्षुद्र वर्ण ,लिपि फिर
ये अविद्या मुझे कैसे करे लिप्त ?
तुमसे ही प्रस्फुटित ,पल्लवित
मिथ्या से मै क्यों सिंचित ?
विरोधाभास से मैं क्यों ग्रसित ?
स्वरुप अपने कर दो प्रकट
सम्हाल लो प्रभू अब तो मुझे
हो जाऊं तुम में समाहित sangeeta
मै आनंद के प्रथम छंद
फिर ये विषाद कैसे है व्याप्त ?
तुम पवित्रता के महासिंधु तो
मै पवित्रतम बिंदु ,फिर
पातकता कैसे आविर्भूत ?
तुम सुमेरु निर्गुण ,सगुणों की
मै रेनू उसी सुमेरु की
फिर तुम में ,मुझमें भेद कैसा ?
तुम विद्या के सम्पूर्ण घट तो
मैं हूँ क्षुद्र वर्ण ,लिपि फिर
ये अविद्या मुझे कैसे करे लिप्त ?
तुमसे ही प्रस्फुटित ,पल्लवित
मिथ्या से मै क्यों सिंचित ?
विरोधाभास से मैं क्यों ग्रसित ?
स्वरुप अपने कर दो प्रकट
सम्हाल लो प्रभू अब तो मुझे
हो जाऊं तुम में समाहित sangeeta
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